आखिर क्यों आहत हुए बोराड़ी नई टिहरी के व्यापारी मनोज शाह?

मनोज शाह, प्रो शिवम बेकर्स और कन्फेक्शनर्स 
नई टिहरी, बौराड़ी के व्यापारी मनोज शाह ने उद्योग व्यापार मंडल बौराड़ी कार्यकारिणी पर उनकी अपेक्षा का आरोप लगाते हुए संगठन के पदों सहित अपनी सदस्यता को लेकर व्यापार मंडल अध्यक्ष को सोशल मीडिया के माध्यम से अपना त्यागपत्र भेजा है। उन्होंने कहा है कि कुछ पदाधिकारियो द्वारा उनके साथ भेदभाव किए जाने से वह स्वयं को आहत महसूस कर रहे हैं और आत्मसम्मान के लिए संगठन को छोड़ना ही बेहतर समझ रहे हैं।
   बोराडी ओपन मार्केट में विगत 25 वर्षों से शिवम बेकर्स और कन्फेक्शनर्स नमक प्रतिष्ठान संचालित करने वाले मनोज शाह ने सोशल मीडिया के माध्यम से उद्योग व्यापार मंडल अध्यक्ष बोराडी मेहताब गुणसोला को सभी पदों सहित सदस्यता को लेकर अपना त्यागपत्र साझा किया है। उन्होंने कहा है कि पिछले दो दशकों से व्यापार मंडल में उनकी सक्रिय भूमिका रही है एवं उन्होंने हमेशा संगठन के निर्देशों का सम्मान करते हुए संगठन की मजबूती को लेकर अपनी पूर्णनिष्ठा के साथ योगदान दिया है, किंतु संगठन में कुछ पदाधिकारी उनके योगदान को नजरअंदाज कर पक्षपातपूर्ण तरीके से कार्यकारिणी में हर बार अपने चहेतों को सामने ला रहे हैं। उन्होंने कहा कि चहेतों को संगठन के पदों पर पहुंचने के लिए कुछ लोगों द्वारा शिवरात्रि के दिन बिना पूर्वसूचना के आनन फानन में बैठक आयोजित करवा दी गई। शिवरात्रि जैसे पावन दिन पर जहां अधिकतर व्यापारी शिव आराधना और भक्ति भाव के साथ उपवास और भंडारे जैसे धार्मिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं ठीक उसी दिन बैठक आयोजित करने का क्या औचित्य हो सकता है।
   मनोज शाह उच्चशिक्षित और नगर के वरिष्ठ व्यापारी हैं। टिहरी के प्रतिष्ठित प्रताप इंटर कॉलेज से इंटर तक अध्ययन करने के बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक होने के साथ ही नगर की रामलीला कमेटी सहित अनेक रचनात्मक गतिविधियों में वह हमेशा अग्रणी भूमिका में रहते आए हैं। नैनीताल जिले के मूल निवासी उनके माता-पिता 60 के दशक में राजकीय सेवा में टिहरी आ गए थे और टिहरी से लगाव के कारण यही के हो गए थे। मनोज शाह का जन्म भी पुरानी टिहरी में हुआ। उनके परिवार का टिहरी के वातावरण और संस्कृति से अटूट नाता रहा है। इसी लगाव और अपनेपन के कारण वह बचपन से ही यहां की अनेक रचनात्मक गतिविधियों में सक्रिय रहे और शैक्षिक योग्यताओं के बावजूद भी उन्होंने सरकारी नौकरियों की बजाय शहर में स्वरोजगार का विकल्प चुना। उन्होंने 'हिमवंत संपादक' के साथ अपना दर्द व्यक्त करते हुए कहा है कि जीवन का अधिकतर समय यहीं गुजर चुका है किंतु कुछ स्वार्थी लोग शायद आज भी उन्हें टिहरी के बजाय बाहरी व्यक्ति ही मानते हैं। 

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